Maharana Pratap Jayanti 2021: महाराणा प्रताप का परिचय:
महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे।इनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में 9 मई, 1540 ई. को हुआ था।इनकी माता जयवंती बाई ही पहली गुरु थी।सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे, जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे।इस राजपूत सम्राट ने जंगलों में रहना पसंद किया लेकिन कभी भी विदेशी मुगलों की दासता स्वीकार नहीं की। महाराणा प्रताप ने देश, धर्म और स्वाधीनता के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया।
महाराणा प्रताप से जुड़ी कुछ खास बातें:
महाराणा प्रताप शरीर से इतने शक्तिशाली और ताकतवर थे कि की वो अपने शरीर पर 70kg का कवच,10-10 kg के जूते व तलवारें एवं 80kg का भाला जिससे बहलोल खान को घोड़े समेत चीर डाला।वे भाला, कवच, ढाल,जूते व तलवारें समेत कुल मिलाकर लगभग 2 क्विंटल से भी अधिक का पहनावा धारण करते थे।महाराणा प्रताप के विशाल शरीर को देखकर दुश्मन थर्राते थे ,यंहा तक कि अकबर भी इनके सामने आने से डरता था। अकबर(जो कि कद में बहुत छोटा था) मन ही मन सोचता था यदि मैं इसके सामने आ गया तो ये मुझे घोड़े समेत दो भागों में चीर डालेगा।
सिसोदिया वंशज महान शासक , प्रात: स्मरणीय, क्षत्रिय कुल भूषण, सनातन धर्म की आन-बान-शान, माँ भारती के वीर सपूत, हिंदुओ की आन बान शान, वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप की जयंती की समस्त पाठकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
महाराणा प्रताप का वो सच जो शायद आपसे छिपाया गया। अकबर महान था या शैतान ? बेशक अकबर की सेना में दम था,लेकिन राणा के सीने में दम था। जब जब घर टूटेगा तब तब पड़ोसी आके लूटेगा-
अनुज को मिली ज्येष्ठ भाई से अधिक वरीयता,जो बनी आपसी फूट की प्रमुख वजह:
महाराणा प्रताप के पिता महाराजा उदयसिंह ने अपनी मृत्यु के समय अपने छोटे पुत्र को गद्दी सौंप दी थी। उदयसिंह अपनी सभी रानियों में से भटियानी रानी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। इसी कारण उन्होंने भटियानी रानी के पुत्र जगमल सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। जबकि प्रताप सिंह ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण स्वाभाविक उत्तराधिकारी होने चाहिए थे। हालांकि प्रजा तो महाराणा प्रताप से लगाव रखती थी। जगमल को गद्दी मिलने पर जनता में विरोध की भावना जागृत हुई। जिसके बाद जगमल ने प्रजा को प्रताड़ित करना आरंभ कर दिया।
प्रताप से अत्याचार देखा नही गया ,और इन्होंने इसका विरोध किया।सत्ता के घमंड में चूर जगमल ने अपने बड़े भाई महाराणा को राज्य की सीमा के बाहर भेजे जाने का आदेश दे दिया।
जब जब घर टूटेगा तब तब पड़ोसी आके लूटेगा:
कुछ दिनों बाद महाराजा उदयसिंह की मृत्यु के बाद समस्त राजपूत सरदारों ने एकत्र होकर महाराणा प्रताप सिंह को राज्यगद्दी पर आसीन करवाया और महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ के राजसिंहासन पर किया गया। उधर, जगमल सिंह नाराज हो गया। घर मे फैली इस आपसी फुट का अकबर ने बखूबी फायदा उठाया। अकबर ने उसे प्रलोभन देकर अपने वश में कर लिया। राजा अकबर ने आमेर के राजा, टोडरमल और जयसिंह को अपने आधीन करके महाराणा प्रताप को कमजोर कर चुका था।ऐसा पहली बार नही हुआ जब 326 BC में सिकंदर भारत आया था तब महाराजा आम्बी ने पोरस को धोखा देकर सिकंदर से संधि कर ली थी, और पोरस युद्ध हार गया। मोहम्मद गौरी भी कभी पृथ्वीराज चौहान को न हरा पाते यदि जयचंद उनके साथ विश्वासघात न करता। यंही नहीं ब्रिटिश भी हमारे यँहा अपनी हुकूमत कायम नही कर पाते , यदि ग्वालियर के सिंधिया,इन्दौर के होल्कर,हैदराबाद के निजाम और पटियाला के राजा ने साथ न दिया होता।इतिहास में हुई ये सभी घटनाएं ‘ जब जब घर टूटेगा तब तब पड़ोसी आके लूटेगा’ इस पंक्ति को चरितार्थ करती है।आज के इस आधुनिक जीवन मे हमे इतिहास से बहुत कुछ सीखना चाहिए।
अकबर के लिए पश्चिमी तट से व्यापार के लिए महत्वपूर्ण था मेवाड़, महाराणा प्रताप ने मेवाड़ के बदले आधे हिंदुस्तान को भी ठुकराया:
मेवाड़ अकबर के लिए दिल्ली से भी ज्यादा बहुत महत्वपूर्ण था। मेवाड़,गंगा मार्ग के व्यापार मार्ग को पश्चिमी तट से जोड़ता था। पश्चिमी तट से यदि कुछ भी आयात या निर्यात करना हो तो अकबर को मेवाड़ पार करना होता था, लेकिन महाराणा प्रताप की वजह से अकबर इसे जीत नहीं पा रहा था।जिस वक्त लगभग पूरा भारत मुगलो की दासता स्वीकार कर चुका था ,लेकिन महाराणा प्रताप अपनी जगह से एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नही हुए। महाराणा प्रताप भीलो के बीच जंगलों में रहे जंहा उबली सब्जी,कच्चा खाना, हरी घास तक खानी पड़ी। लेकिन प्रताप ने मुगलों के सामने कभी अपना स्वाभिमान नही झुकने दिया। महाराणा प्रताप ने भीलो के साथ सादा जीवन जिया।प्रताप ने धीरे धीरे भीलो और आदिवासियो की सेना को अपने साथ जोड़ा। अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए टोडरमल, राजा मानसिंह एवं भगवानदास समेत कई हिंदुओ को प्रताप की शरण मे भेजा लेकिन प्रताप ने सारे प्रपोजल ठुकरा दिए।एक प्रोपोजल में तो अकबर ने मेवाड़ के बदले आधा हिंदुस्तान देने तक का वादा कर दिया था।
हल्दीघाटी का युद्ध (अकबर कभी जीता नही और महाराणा कभी हारे नहीं)
हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर को जीत मिली और न ही राणा को हार। मुगलों के पास कुशल सैन्य शक्ति एवं मजबूत सेना थी ,तो वंही राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।बेशक अकबर की सेना में दम था,लेकिन राणा के सीने में दम था।
अकबर कभी महाराणा प्रताप के सामने नही आता था,उसे डर रहता था कि प्रताप एक तलवार मारेंगे, मैं घोडे समेत कट जाऊंगा। क्योंकि अकबर की लंबाई महाराणा प्रताप की अपेक्षा बहुत छोटी थी।महाराणा प्रताप शरीर से इतने शक्तिशाली और ताकतवर की वो अपने शरीर पर 70kg का कवच,10-10 kg के जूते व तलवारें एवं 80kg का भाला जिससे बहलोल खान को घोड़े समेत चीर डाला।वे भाला, कवच, ढाल,जूते व तलवारें समेत कुल मिलाकर लगभग 2 क्विंटल से भी अधिक का पहनावा पहना करते थे। हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे जबकि अकबर के पास 85000 सैनिक थे।इसके बावजूद भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे। नीले रंग का अफगानी घोड़ा चेतक बहुत शक्तिशाली था,जिसे महाराणा प्रताप अपने पुत्र से भी ज्यादा प्रेम करते थे। महाराणा प्रताप अपने घोडे के आगे हाथी जैसी नुकीली सूँड लगा देते थे ,जिससे कि अकबर के हाथी भ्रमित हो जाते थे।युद्व के दौरान जब महाराणा प्रताप अकेले फंस गए थे, तब चेतक ने एक पैर से घायल होने के बावजूद भी 28 फ़ीट की गहरी खाई कूदकर महाराणा प्रताप की जान बचायी थी। जिसके बाद चेतक ने अपने प्राण त्याग दिए। चेतक के अलावा महाराणा प्रताप के पास एक रामप्रसाद नाम का हाथी भी था। जिसे अकबर ने युद्ध के दौरान अपने वश में कर लिया था।इस हाथी ने 28 दिन तक अपने स्वामी महाराणा प्रताप के वियोग में अन्न व जल ग्रहण नही किया, और कमजोरी के कारण उसने भी अपने प्राण त्याग दिए।इस घटना के बाद अकबर ने बोला कि जिस महाराणा प्रताप के एक हाथी ने मेरे आगे सर नही झुकाया,मैं उस महाराणा प्रताप का सर कैसे झुकवा सकता हूं?
पत्र के माध्यम से पृथ्वीराज राठौड़ को दिया करारा जवाब , बादलों में वो ताकत कँहा जो सूर्य को…….
एक बार किसी के द्वारा अफवाह उड़ा दी गई कि महाराणा प्रताप अकबर के साथ संधि कर रहे हैं ,और मेवाड़ को मुगलो को सौंप रहे हैं। यह खबर जैसे ही बीकानेर के राजा पृथ्वीराज राठौड़ के कानों तक पंहुची तो उन्होने तुरंत एक पत्र के माध्यम से राणा से स्पष्टीकरण मांगा। जिसके जवाब में महाराणा प्रताप ने भी राठौड़ को एक पत्र लिखा। प्रताप ने लिखा कि “बादलों में वो ताकत कँहा है ,जो सूर्य को रोक सके।शेर की मार सह सके ,ऐसे सियार ने कभी धरती पर जन्म ही नहीं लिया। धरती का पानी पी सके ऐसी चोंच चेतक की बनी ही नहीं। कुत्ते की तरह जीवन जीने वाले हाथी की बात आज तक सुनी ही नहीं है।जब तक इन बाजुओं में ताकत है न तो तलवारे म्यान में विश्राम करेगी और न ही राजपूती विधवाएँ होगी। भूखा प्यासा रह के भी मेवाड़ की रक्षा करूँगा,अपने प्राण जाने दूंगा लेकिन मेवाड़ नहीं जाने दूँगा।”
महानता की परिभाषा क्या है? क्या इसके भी कोई मापदंड होने चाहिए, रक्त से बना इतिहास क्या स्याही से मिटेगा :
यह सवाल बिल्कुल वाजिब है कि आखिर महानता की परिभाषा क्या है ? अकबर हजारों लोगों की हत्या करके भी महान शासक कहलाया जबकि सिसोदिया वंश के महाराणा प्रताप हजारों लोगों की जान बचाकर भी महान नहीं कहलाए।अकबर महान या शैतान, ये आपको तय करना है। गौरतलब, हमारे देश का इतिहास अंग्रेजों और कम्युनिस्टों ने लिखा है। जिन्होंने भारत पर अत्याचार किया या जिन्होंने भारत पर आक्रमण करके लूटपाट की या भारत का धर्मांतरण किया या भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की,इतिहासकारो ने उन्हीं लोगों को हाईलाइट किया है। वैसे भी इतिहासकारों के द्वारा कई महान हिंदु सम्राटों एवं राजपूतों के इतिहास को लगातार संकुचित करने की कोशिश होती रही है। लेकिन ” रक्त से बना इतिहास स्याही से नही मिटता।”